दर्द जब हद से गुज़र गया…

नवम्बर 6, 2012 § टिप्पणी करे

दर्द जब हद से गुज़र गया तो ग़ज़ल बन गया,
तेरे एक ना होने से सारा मजमा फीका पड़ गया,
तेरी तस्वीर सुकुन देती थी वो आज तेरी कमी का पैय्माना बन गयी,
तेरे हाँथों को छूने की रोजाना की ख्वाहिश आज अपनी जिद्द पर अड़ गयी,
जो चंद लम्हे तुम्हे मुस्कुराते देखा था वो अब कसक बन गये,
तेरी उंगली पे सजे पत्थर की चमक आज आँखों में बस गयी,
वो खनकती हंसी तुम्हारी आज तन्हाई बन गयी,
चाय के प्यालों में घुले हुए सपने आज मीठी प्यास बन गये,
आज कलम ने जिद्द करली ग़ज़ल को पाने की तो दर्द की स्याही बन गयी,
कलम को ग़ज़ल मिली और दर्द स्याही बन बह गया,
पर तुम वहीँ रह गयी और  मैं यहीं रह गया,
दर्द जब हद से गुज़र गया तो ग़ज़ल बन गया।

कुशाग्र

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